बुंदेली कविता:-
बुंदेली कविता:- मउआ, डुबरी, लटा भूल गए दूद, महेरी, मठा भूल गए। कच्चौ आंगन , पौर उसारौ ठाट , बडैरी , अटा भूल गए। कोयल पदी डार की अमियाँ बरिया वारे जटा भूल गए। बारी लटकत भैंस तुरैया बथुआ, भाजी ,भटा भूल गए। बसकारे के बड़े मेंदरे काढ़ फिरत्ते गटा भूलगए। चटनी रोज पिसत्ति जीसें